भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुमको केवल हँस लेने का चाव है / कृष्ण मुरारी पहारिया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुमको केवल हँस लेने का चाव है
तुम क्या समझोगे, कैसा यह घाव है?

           जाने कितनी गाढ़ी-गाढ़ी वेदना
           पी लेने पर आता है ऐसा नशा
           कवि अपने अन्तर की आँखें खोलकर
           गाता है गीतों में युग-युग की दशा

कहते हो कविता तो मन बहलाव है

           क्षण-दो क्षण की ओछी-टुच्ची साधना
           करके कोई होता, बोलो सिद्ध कब
           ऐसा भी दिन आ जाता है हार का
           ढहता है तन होकर श्रम से वृद्ध जब

यह तो सारे जीवन का भटकाव है

06.06.1962