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तुमको चाहा तो मन ये अगहन हो गया / अमरेन्द्र

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तुमको चाहा तो मन ये अगहन हो गया
धान सोने के हों जैसे, तन हो गया।

मेरी प्रीति की छाया जो तुम पर पड़ी
बन गया जग ये राहू गहन हो गया।

प्यार में मैंने अब भी और जो कुछ कहा
लोग कहते हैं शेरो-सुखन हो गया।

प्रीति में मेरे जीवन का सारा समय
कुछ जगन हो गया, कुछ रगन हो गया।

प्रेम जब भी किया, गोर, धरती हुई
और आकाश सारा कफन हो गया।

कामना मुक्ति की ले के अब क्या करूँ
मेरा जीवन तो होमो-हवन हो गया।