तुमने अपना चेहरा छिपा क्यों लिया / राजीव रंजन प्रसाद
चाँद में दाग है, फिर भी हँसता रहा,
तुमने अपना चेहरा छिपा क्यों लिया॥
दूर तक नाँव में, पैंजनी पाँव में
ताल में, गाँव में, मेघ की छाँव में
हमने सदियों गुजारे हैं, पल वो जिये
आज आँखों को दर्पण तरसता रहा
तुमने कागज में लिक्खा जला क्यों दिया?
चाँद में दाग है फिर भी हँसता रहा
तुमने अपना चेहरा छिपा क्यों लिया ॥
दर्द को नाम देने की हसरत नहीं
जान अपनी ही लेने की ताकत नहीं
अनकही रह गयी दास्तां भूल कर
कोई चातक को पानी पिलाता रहा
तुमने होठों पे जिह्वा फिरा जो लिया
चाँद में दाग है फिर भी हँसता रहा
तुमने अपना चेहरा छिपा क्यों लिया॥
मैनें पूछा नहीं, तुमसे कुछ भी कभी
मौन की आग से चाँदनी जल गयी
तुमने आँखों में पत्थर लगा तो लिया
क्या वो, पलकों के कोरों पिघलता रहा?
मोम, तम में ये तुमने दीया क्यों लिया?
चाँद में दाग है फिर भी हँसता रहा
तुमने अपना चेहरा छिपा क्यों लिया॥
फूल को ओस खिलना सिखाते रहे
दर्द परबत में पत्थर बढ़ाते रहे
मेरे सीने में जलती रही इक चिता
ख्वाब जिन्दा रहा मुझको छलता रहा
तुमने आँखों में मेरा धुवाँ क्यों लिया?
चाँद में दाग है, फिर भी हँसता रहा
तुमनें अपना चेहरा छिपा क्यों लिया॥
22.09.2007