Last modified on 30 मई 2018, at 17:15

तुमने छुआ था मेरा जब हाथ चुपके-चुपके / ऋषिपाल धीमान ऋषि

तुमने छुआ था मेरा जब हाथ चुपके-चुपके
कितने मचल उठे थे जज्बात चुपके-चुपके।

बिखरे हुए हैं ख़्वाबों के फूल सहने दिल में
आया था दिल के घर में कोई रात चुपके-चुपके।

बस्ती में ख़्वाहिशों की हलचल मचा गए हैं
वो इक झलक की देके सौग़ात चुपके-चुपके।

क्या जाने खौफ़ क्या है उनके जहन में यारो?
करते हैं आजकल वो हर बात चुपके-चुपके।

वो भी नहीं बताते अब दर्द अपने दिल का
और हम भी सह रहें हैं सदमात चुपके-चुपके।

आँखों का पानी देखा, देखी नहीं है तुमने
अन्दर जो हो रही है बरसात चुपके-चुपके।

यूँ कहने को तो मुझसे ही मिलने आए हैं वो
पर देखते हैं मेरी औक़ात चुपके-चुपके।।