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तुमने छुआ था मेरा जब हाथ चुपके-चुपके / ऋषिपाल धीमान ऋषि
Kavita Kosh से
तुमने छुआ था मेरा जब हाथ चुपके-चुपके
कितने मचल उठे थे जज्बात चुपके-चुपके।
बिखरे हुए हैं ख़्वाबों के फूल सहने दिल में
आया था दिल के घर में कोई रात चुपके-चुपके।
बस्ती में ख़्वाहिशों की हलचल मचा गए हैं
वो इक झलक की देके सौग़ात चुपके-चुपके।
क्या जाने खौफ़ क्या है उनके जहन में यारो?
करते हैं आजकल वो हर बात चुपके-चुपके।
वो भी नहीं बताते अब दर्द अपने दिल का
और हम भी सह रहें हैं सदमात चुपके-चुपके।
आँखों का पानी देखा, देखी नहीं है तुमने
अन्दर जो हो रही है बरसात चुपके-चुपके।
यूँ कहने को तो मुझसे ही मिलने आए हैं वो
पर देखते हैं मेरी औक़ात चुपके-चुपके।।