तुमने जो कुछ दिया प्राण के साथ सहेज सुहावना / गुलाब खंडेलवाल
तुमने जो कुछ दिया प्राण के साथ सहेज सुहावना
जनम-जनम का देना था वह जनम-जनम का पावना
बाँध सजल अंचल में, करुणा के आँसू की डोर से
जो चुपके दे डाला तुमने काँप रही दृगकोर से
वह तो मेरा प्राप्य सदा का, दीप हृदय की साध का
जिसे बचा रखा था तुमने, चिर झंझा-झकझोर से
जिसकी कंपित लौ में पलती थी युग-युग की भावना
कुछ तो था जो मादकता बन साँस-साँस में छा गया
कुछ तो था जो अनजाने ही प्राणों को सहला गया
कुछ तो था जिसका मृदु दंशन जीवन-कुसुम खिला गया
बिना दिए तुम जिसे दे गयी, बिना लिए मैं पा गया
कुछ तो था जिसके हित सारी आयु बनी प्रस्तावना
पग-पग पर घायल प्राणों की पीड़ा भरी पुकार है
करुणा की दुलहन का होता शूलों से श्रृंगार है
जीवन के उजड़े तट पर जो नाव बँधी बेपाल की
उस पर ही चढ़कर अब जाना सातों सागर पार है
अश्रु सजल नयनों का चुंबन लगता और लुभावना
टूट न जाय कहीं चेतनता, पल तो तुम्हें विराम दूँ
जिसे तुम्हारी दृष्टि कह गयी, मैं उसको क्या नाम दूँ!
जीवन की तममय घाटी में कोई तो लघु दीप हो
इतना ही अधिकार बहुत है, मुड़ता अंचल थाम लूँ
बनी रहे विस्मित प्राणों में एक सजल संभावना
तुमने जो कुछ दिया प्राण के साथ सहेज सुहावना
जनम-जनम का देना था वह जनम-जनम का पावना