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तुमने तन और मन की बात सुनी / विनोद तिवारी


तुमने तन और मन की बात सुनी
हमने ऐ दोस्त! जन की बात सुनी

प्यार हरियालियों से करते थे
वृद्ध-ऋषियों ने वन की बात सुनी

वह व्यवस्था का पक्ष कैसे ले
जिसने सामान्य-जन की बात सुनी

सिर्फ़ ऊँचाइयाँ ही मत देखो
हमने ऊँचे गगन की बात सुनी

मात्र आशा ही उसका जीवन है
प्यासे चातक ने घन की बात सुनी

उसपे लेबिल-सा एक चस्पाँ है
जब से भारत-भवन की बात सुनी