भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुमने न अभी देखा जीवन! / रामेश्वरलाल खंडेलवाल 'तरुण'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुमने न अभी देखा जीवन!

जलते-जलते आँसू न पिये,
उधड़े न हृदय के घाव सिये,
निगलीं न हलाहल की घूँटे, भोगे न हृदय पर डंक गहन!
तुमने न अभी देखा जीवन!

पाली न हृदय में पीर मधुर,
मन के न रचे हैं नीड़ मधुर,
ढहते न अभी देखे तुमने, मन के सतखंडे रंग-भवन!
तुमने न अभी देखा जीवन!

बस गीत मधुर सुकुमार सुने,
सपने हैं जालीदार बुने,
फूले-फूले मृदु फूल चुने, हिम-सी शय्या पर किया शयन!
तुमने न अभी देखा जीवन!

आँसू देखो, आहें देखो,
सौ दीप जला राहें देखो!
मँझधार भँवर में डाल तरी, तम में देखो जल की मचलन!
तुमने न अभी देखा जीवन!

जीवन ऐसा आसान नहीं,
केवल अलियों का गान नहीं,
यह अर्द्धनिशा के चातक का, सावन के मरु में व्यर्थ रुदन!
तुमने न अभी देखा जीवन!