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तुमने पार की सीमा / रेज़ा मोहम्मदी / श्रीविलास सिंह

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तुमने पार की सीमा : तुम्हारी मातृभूमि की नहीं है कोई भाषा,
अथवा हो सकता है न हो उसके पास कुछ कहने को ।
तुमने पार की सीमा : कल्पना करो, यह है तुम्हारा गृहदेश
ऐसा क्या है तुम्हारी मातृभूमि में, जिसकी कमी है सारी दुनिया में ?

पहले, तुम्हारा स्वागत हुआ आंसुओं द्वारा ।
यह दयालु मित्र निर्दयी चेहरे वाला
शोक ने किया तुम्हारा आलिंगन निकल धूल और गन्दगी में से
एक मित्र जिसने खींच लिया तुम्हें और किसी से भी क़रीब
बीमार वृद्ध आदमी जिसने स्वागत किया तुम्हारा इतनी कोमलता से
थक चुका था यात्रा करते, एक गाँव से दूसरे गाँव की
तुमने आकाँक्षा की प्रसन्नता ख़रीदने की
किन्तु केवल तस्करों के पास ही है यह विक्रय हेतु ।

तुमने पार की सीमा : कल्पना करो, यह है तुम्हारी मातृभूमि ।
ऐसा क्या है तुम्हारी मातृभूमि में जिसकी कमी है सारी दुनिया में ?
ओह कवि ! तुम आए हो मुसीबतों की सल्तनत में,
बिना आकाश के एक देश में,
एक देश, जहाँ कवि करते हैं व्यापार मानवता का,
जहाँ बन्द कर दिए गए हैं मुँह पैगम्बरों के,
जहाँ कुत्ते हैं मन्त्री और गधे हैं इमाम ।
नहीं होती कोई अज़ान यहाँ की मस्जिदों से बिना रिश्वत के ।
क्या अपेक्षा की थी तुमने अपनी मातृभूमि से ?
कि इसकी भोज की मेज़ें नहीं भरी हुई थी हड्डियों से ?
कवि ! तुम्हारी मातृभूमि है एक गुज़र चुका अतीत ।
अब यह देती नहीं कुछ, सिवाय अपमान, लोभ, ऊब और शोक के ।
कविता की जगह, काश होता तुम्हारे पास सोना और शक्ति
उस घायल प्रतिभा के लिए, नहीं है शेष अब कुछ बेहतर यहाँ ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : श्रीविलास सिंह