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तुमने फिर से वहीं मारा है ज़माने वालों / आनंद कुमार द्विवेदी
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हर तरीका मेरा न्यारा है, ज़माने वालों
आज कल वक़्त हमारा है, ज़माने वालों
जख्म रूहों के भरे जायेंगे, कैसे मुझसे
तुमने फिर से वहीं मारा है, ज़माने वालों
दो घड़ी चैन से तुमने जिसे जीने न दिया
किसी की आँख का तारा है, ज़माने वालों
बेवजह ही नहीं मैं बांटता, जन्नत के पते
मैंने कुछ वक़्त गुज़ारा है, ज़माने वालों
कौन कम्बख्त भला होश में रह पायेगा
जिस तरह उसने निहारा है, ज़माने वालों
आज ‘आनंद’ की दीवानगी से जलते हो
तुमने ही उसको बिगाड़ा है, ज़माने वालों