भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तुमने मुझे निहारा / उद्भ्रान्त
Kavita Kosh से
एक अजूबा गन्ध
लग गई मन में आज महकने
ज्योंही तुमने मुझे निहारा
धूप-दीप जल उठे
प्राण के कोने-कोने में
पलक झपकते —
चितवन बदली
जादू-टोने में
एक अजूबा रंग
लग गया मन में आज दहकने
ज्योंही तुमने मुझे निहारा
सन्नाटे में लगी तैरने
एक मधुर हलचल
खटकाए, हौले से कोई
यादों की साँकल
एक अजूबा छन्द
लग गया मन में आज चहकने
ज्योंही तुमने मुझे निहारा