भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तुमने हमें बुलाया साथी जब हो गए पराए हम / वीरेंद्र मिश्र
Kavita Kosh से
तुमने हमें बुलाया साथी जब हो गए पराए हम,
अब तो दुलार के जग में क्यों आएँ बिना बुलाएँ हम,
कैसे मज़ाक है आँसू के, सपने के देवालय से,
पलकें रहे झुकाए मूरत, नज़रें रहें उठाए हम ।