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तुमने हमें बुलाया साथी जब हो गए पराए हम / वीरेंद्र मिश्र

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तुमने हमें बुलाया साथी जब हो गए पराए हम,
अब तो दुलार के जग में क्यों आएँ बिना बुलाएँ हम,
कैसे मज़ाक है आँसू के, सपने के देवालय से,
पलकें रहे झुकाए मूरत, नज़रें रहें उठाए हम ।