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तुमने ही तो था कहा प्राण! "सखि कितना कोमल तेरा तन / प्रेम नारायण 'पंकिल'

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तुमने ही तो था कहा प्राण! "सखि कितना कोमल तेरा तन ?
मोहक मृणाल-किसलय शिरीष-सुमनों का करता मद-मंथन।
बस सुमन-चयन-अभिलाषा से ही होती अमित अरुण अंगुली ।
हो जाते पदतल लाल लाल जब कभीं महावर बात चली।
थकती काया स्मृति से ही होगा सुरभित अंगराग-लेपन ।
कर गया ग्लानि-प्रस्वेद-ग्रथन कोमल मलमल का झीन वसन ।
हा! इस दुलार हित नित विकला बावरिया ने बरसाने वाली-
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवन वन के वनमाली ॥३७॥