भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुमसे जो मिले नयन / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुमसे जो मिले नयन,
दूर हुए दुरित-शयन।

खिले अंग-अंग अमल
सर के पातः-शतदल
पावन-पवनोत्कल-पल,
अलक-मन्द-गन्ध-वयन।

खग-कुल कल-कण्ठ-राग
फूटे नग, नगर, बाग,
अधर-विधुर छुटे दाग,
कर-कर सित-सुमन-चयन।

अखिल के न खिले हुए,
खले हिले-मिले हुए,
एक ताग सिले हुए
आये हो एक अयन।