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तुमसे प्यार माँगने आयी / रंजना वर्मा

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प्रेम पिपासित पीड़ित उर ले तुमसे प्यार माँगने आयी।
बने कृपण तुम दे न सकोगे पर उपहार माँगने आयी।
तुमसे प्यार माँगने आयी॥

पहली बार तुम्हारे आगे
है मैंने आंचल फैलाया,
देखो नैनों की बदली में
पीड़ा का चंदा मुस्काया।
निष्ठुर जग की अलख नीतियाँ
बंधन बन कर जकड़ रही हैं,
सौंपे भाव हृदय के तुमको
बोलो तो तुमसे क्या पाया?

तुम को खो कर जी न सकूँगी जीवन जहर बनेगा मेरा
फिर भी देखो तुम से जीने का अधिकार माँगने आयी।
तुमसे प्यार माँगने आयी॥

तुम कहते हो सब की सोचूँ
परहित मैं अपना सुख वारूं,
किंतु तुम्हारी स्मृतियों को मैं
कैसे मन से आज बिसारूं?
कैसे समझूँ तुम्हें पराया
साँसों में धड़कन में तुम हो,
मन प्राणों की जला आरती
क्यों न तुम्हारी आज उतारूं।

तुम सक्षम हो मैं अशक्त चाहो तो और लगाओ ठोकर
तुमसे सुख का नहीं व्यथा का हूँ भंडार माँगने आयी।
तुमसे प्यार माँगने आयी॥

तुम महान हो जग की सोचो
मैं निज जीवन वार चुकी हूँ,
कैसे औरों की सोचूँ जब
मैं हर बाजी हार चुकी हूँ।
कुछ भी कह लो आज उड़ा लो
हँसी हमारी तुम जी भर के
पर सच कहती मृत्यु-नटी को
मन से आज पुकार चुकी हूँ।

जाना चाहो वही सही क्या कभी बनूँगी पथ की बाधा
नहीं तुम्हारा मात्र चिता का हूँ अभिसार माँगने आयी।
तुमसे प्यार माँगने आयी॥