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तुमसे मिलना तो / महेन्द्र भटनागर

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तुमने मिलना तो अब दूभर !

मूक प्रतीक्षा में कितने युग बीत गये,
चिर प्यासी आँखों के बादल रीत गये,

एकाकी जीवन के निर्जन
पथ पर केवल पतझर-पतझर !

देख रहा हूँ, सभी अपरिचित और नये,
वे जाने-पहचाने सपने कहाँ गये ?

ढूँढ़ चुका अविराम सजग
कोना-कोना, जल-थल-अम्बर !