तुमसे / विमल राजस्थानी
तुमने मुझको डँसा अचानक नागिन! इतने ज़ोर से
बरस पड़ीं सावन की आँखें, धरा नहायी लोर (लोर: भोजपुरी भाषा का एक शब्द। अर्थ-आँसू) से
भोले मन को लगा कि तुम गठ-बंधन वाली डोर हो
दुख की काली रातों का तुम अमर सुहासी भोर हो
इतनी चमक कहाँ से पायी
इतनी ज्योति कहाँ से लायी
मुझको लगा कि तुम जीवन-सागर में उठी हिलोर हो
तुमको देख दर्द पिघला था
आँसू का निर्झर उछला था
मुझको थी उम्मीद कि तुम मेरा दुख बाँहों में भर लोगी
मेरे अश्रु पोंछ दोगी, तुम हँस, उँगली की पोर से
लेकिन तुमने डँसा अचानक नागिन! इतने ज़ोर से
बरस पड़ीं सावन की आँखें, धरा नहायी लोर से
अल्हड़ मन को लगा कि तुम सुरभित सुमनों का हार हो
मेरे मदमाते यौवन का तुम अनंग-शृंगार हो
इतनी सुरभि कहाँ से पायी
यह सौन्दर्य कहाँ से लायी
मुझको लगा कि तुम नख से शिख तक बस केवल प्यार हो
तुमको देख प्राण हुलसे थे
अधरों पर मधु-छंद हँसे थे
मुझको था विश्वास कि पथ की इति तक पैंजनियाँ झनकेंगी
बँधी रहेगी प्राणों की पतंग जीवन की डोर से
लेकिन तुमने डँसा अचानक नागिन! इतने ज़ोर से
बरस पड़ीं सावन की आँखें, धरा नहायी लोर से
तुम तो निकली नागिन काली
जहर भरी सोने की प्याली
बूँद-बूँद में सम्मोहन था
चमक-दमक थी, आकर्षण था
बन कर डोर अंग से लिपटी
बन गलहार वक्ष से चिपटी
तन-मन में तूफान भर दिये
अधरों पर विष-दंत धर दिये
साँसों में भर दिया हलाहल
सोख लिया विश्वासों का बल
पंख-पंख नुच गये, प्रेम-खग शोणित से लथ-पथ कर डाला
पात-पात झर गये प्रीति-तरु के झंझा-झकझोर से
लेकिन तुमने डँसा अचानक नागिन! इतने ज़ोर से
बरस पड़ीं सावन की आँखें, धरा नहायी लोर से
-आकाशवाणी के पटना-केंद्र से प्रसारित
18.3.1976