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तुम्हारा अक़्स उभरा जा रहा है / अनीता मौर्या
Kavita Kosh से
तुम्हारा अक़्स उभरा जा रहा है,
लहू आँखों से बहता जा रहा है,
मैं जितनी दूर होती जा रही हूँ,
वो उतना पास आता जा रहा है,
मुझे डोली में रुख़सत कर के देखो,
मेरा क़िरदार बदला जा रहा है,
वो गाड़ी दूर भागी जा रही पर,
कोई आँखों में ठहरा जा रहा है,
वो आया था तो मेला सज गया था,
मगर उस पार तन्हा जा रहा है ..