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तुम्हारा इंतजार / मनीष मूंदड़ा
Kavita Kosh से
जीवन के उन क्षणो में
उन लम्हों में
जब सब कुछ
एकदम से बिखरता सा
नजर आता हैं
जी जान से सींचा हुआ पौधा
जब वक़्त की आँधियों के सामने
बेबस-सा नजर आता हैं
जब अपने ख़ुद के बुने सपने
उलझनों के जाल महसूस होते हैं
हवा के तेज थपेड़ों से
आशियाँ के तिनके एक-एक कर
बिखरने लगते हैं
लाचार, सहमी-सी आँखों में जब
अन्धेरों के साये घर करने लगते हैं
तब घबराया हुआ यह मन बस
तुम्हारा इंतजार करता हैं
यह जानते हुए भी
तुम्हारा वापस आना अब मुमकिन ही नहीं।