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तुम्हारा छूना / अनुपम सिंह
Kavita Kosh से
मत छुओ इस तरह बार- बार
तुम्हारे छूने से
मैं गल कर राँग हो जाती हूँ
कहीं अन्दर ही अन्दर
यह जानते हुए भी
की तुम्हारा छूना एक छलावा है
यह भी पता है की तुम्हारे इस छलावे
और अपने घुलते जाने की अन्तिम अवस्था मे
कुछ भी शेष नहीं रह जाऊँगी
फिर भी अच्छा लगता है तुम्हारा छूना
तुमको पाने की ललक
मेरी कोई स्नायविक कमजोरी नहीं
अपने को पाने और बचाए रखने की
अन्तिम कोशिश है।