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तुम्हारा नाम / महेश सन्तोषी
Kavita Kosh से
हवाओं का कोई रंग नहीं होता
पर प्यार की रंगोलियों की आत्मा होती है हवाएँ;
बाँहों के क्षितिज, कहीं बाहों में ही छिपे होते हैं,
बँधे बदन सिहरते हैं इधर, उधर सिहरती हैं हवाएँ!
तुम्हारा नाम गुलमोहर भी हो सकता था
पलाश भी, अमलताश भी,
प्यार का दूसरा नाम शाश्वत वसन्त ही होता है,
हमने मौसम से सच पूछा, फूलों से भी बात की,
फिर मेंहदी लगीं हथेलियाँ हो या हल्दी रचीं,
आँखों में ठहरकर रह गये उनके रंगों के साये
जिनकी परछाइयाँ ही अब बाँहों में सिमटकर रह गयी हैं,
कई ऐसे भी वसन्त, जो लौट कर नहीं आए!