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तुम्हारा न होना / विनोद शर्मा
Kavita Kosh से
तुम्हारा न होना मेरे साथ है
मैं चल रहा हूं अंतहीन सड़क पर
अकेला
तुम्हारी चुप्पी मुझे सुनाई पड़ रही है
कभी न पढ़ी-सुनी गई
अपनी कविता की तरह
तुम अदृश्य होकर भी मेरे सामने हो
किसी पूर्वाीाास की तरह
दूरी तुम्हें मेरे पास खींच लाई है
किसी खोई हुई किताब के
याद किए हुए सबक की मानिन्द।