भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुम्हारा पेट भरा था / गीताश्री

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम्हारा पेट भरा था, तुम ख़ाली थे,
तुम्हारे पास रोशनी का जखीरा था,
तुम काग़ज़ों के गट्ठर पर लोट-लोट कर बड़े और महान हो रहे थे,
तुम्हारे पास पूरा वक़्त था, मोटे-मोटे ग्रन्थ लिखने का.
सबकुछ उगल देने के बाद तुमने यह हक़ भी हासिल कर लिया
कि हाथो में ज्ञान की दोधारी तलवार आ गई।
 
तुम जुबानी हिंसा के अधिष्ठाता / अधिष्ठात्री बन गए।
तुमने अपने लिए पैदा किए ढेर सारे रक्तबीज
जो तुम्हारी विरुदावली गाने के लिए अभिशप्त थे
तुमने किए हर स्वांग और बेगुनाहो पर तलवारें तान कर
तालियां बजवाईं अपने दरबारियो से
कि वे सब बिन पेन्दी के लोटे थे
जहाँ राह दिखती थी
वहाँ की चाह पैदा कर लेते थे .,.
ये सब कीच-पथ के राहगीर थे
अक्सर तुम्हारे लिए तरह तरह के स्वांग भर करते थे तुम्हारा मनोरंजन