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तुम्हारा स्पर्श / आभा पूर्वे

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तुम्हारा स्पर्श
मैं
मंदिर के कण-कण में
जी रही थी
जिस दिन
तुम आये थे
और स्पर्श हुआ था
मेरे कण-कण से।
मैं बज उठी थी
घंटियों के रुनझुन-सी ।