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तुम्हारा होना / योगेंद्र कृष्णा
Kavita Kosh से
जैसे अर्ध-रात्रि की
अर्ध-निद्रा में
स्वप्न की भाषा में
संवाद करती हो कोई आत्मा
जैसे नीम-बेहोशी में
सुनाई पड़ता हो
कोई प्रीतिकर संगीत
जैसे गर्मियों की
बदहवास दोपहर और
सुस्ताई सांझ के बाद भी
अमावस की रात में
चमकता हो कोई चेहरा अम्लान
जैसे बेहद असहज
और बीहड़ चुप्पियों को
हौले से तोड़ता हो कोई शब्द
जैसे अंधकार की स्वप्निल कौंध में
चूमती हो कोई आवाज
जैसे बहुत दूर से आती
मद्धिम पड़ रही किसी पुकार में
ठहर जाता हो कोई उम्र भर...