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तुम्हारा / पृथ्वी: एक प्रेम-कविता / वीरेंद्र गोयल

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पाया मैंने ईश्वर को
इसी जीवन में
जब तुम आयीं
कहा धीरे से
तुम करती हो मुझसे प्यार
अचंभित कर देने वाला क्षण
जिसकी इस जीवन में
उम्मीद भी नहीं थी
कहते हैं ईश्वर को पाने में
कई जन्म लग जाते हैं
बड़ी साधना करनी पड़ती है
पर ईश्वर तो सामने था
तुम्हारे प्रेम के रूप में
और कह रहा था खुद ही
प्रेम के लिए
कितना रोमांचित वो क्षण
कैसे बाँधूँ शब्दों में
ईश्वर को सामने पाकर
क्या उच्चारता
सिवाय स्वीकार करने के
सिर झुकाकर
इस अनुग्रह के लिए
कृतार्थ हूँ
तुम्हें पाने के बाद
संपूर्ण हो गया जीवन
और वैसे भी
ईश्वर को पाने के बाद
क्या बचता है इस जीवन में?