तुम्हारी आवाज़ / तेजेन्द्र शर्मा
तुम्हारी आवाज़
एक जादू है,
जो सर चढ़ क़र बोलता है
और एक तिलिस्म की तरह
मेरे पूरे व्यक्तित्व पर छा जाता है .
कहीं दूर बजती
पवित्र घंटियों सी है
तुम्हारी आवाज़
मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारे
सब तुम्हीं से तो पवित्रता पाते हैं .
तुम्हारी आवाज़, एक विद्युत तरंग है ,
जो मेरे दिल की
धड़क़न को
चलाती है, धड़क़ाती है
और जीवित रखती है .
अमृत की सी, मधुर है
तुम्हारी आवाज़
देवताओं और असुरों को
युध्द करवाती है, और स्वयं
अमर हो जाती है .
नूपुर की झंकार सी है
तुम्हारी आवाज़
नृत्य की सारी सीमाओं
को तोड़, नटराज की मूर्ति
में समा जाती है .
तुम्हारी आवाज़ ही
कृष्ण की राधा है,
विष्णु की लक्ष्मी है,
शिव की पार्वती है
और यही है राम की जानकी.
सत्य है तुम्हारी आवाज़
शाश्वत है, शिव है , सुन्दर है,
मेरी आत्मा को
अपने रथ में बिठा
तीनों लोकों के दर्शन करवाती है .
तुम्हारी आवाज़ आदि है , अनादि है
उसका ना कोई पर्याय है
न ही कोई विलोम
तुम्हारी आवाज़ को ही सब
उच्चारते हैं !