तुम्हारी उदासी मेरी कविता की पराजय है / कर्मानंद आर्य
सच कह रहा हूँ
नहीं लिख सकूंगा इस जंगल का इतिहास
इस जंगल से गुजरने वाली नदियों का आत्मवृत्त
मछलियों और केकड़ों की जीवंत कहानी
सच कहूँ यहाँ इतिहास है ही नहीं
यहाँ कुछ टटोलेंगे
तो मिलेगा कुछ और
राजाओं के नाख़ून हैं यहाँ इतिहास की जगह
रानियों का क्रीड़ालाप और फंसी हुई कंचुकी है
सीताओं का मृगचर्म पड़ा हुआ है
सच कह रहा हूँ
नहीं लिख सकूंगा इस जंगल का इतिहास
यह आदिमानवों की नगरी है
जंगली और असभ्य
अपनी अनोखी दुनिया और प्रतिमानों से भरे हुए
फूलों की नाजुक कहानी है यहाँ
देवता, जाख, केंदु और पलास
भालू और मनुष्य का सामूहिक नृत्य
यहाँ पशु हैं लेकिन पशुता आयी नहीं आजतक
जोंक, घोंघे, केकड़े, शैवाल और नदियाँ
उन्होने सोचा नहीं अपने पुरुखों के बारे में
बस खाया पिया और खोये रहे अपनी दुनिया में
नदियों के किनारे रखे कुछ सूत्र
पाणिनी के व्याकरण से पहले लिखे हुए
हाँ एक इतिहास है उनके पास
उनके औजार और गीत कहते हैं कोई कहानी
पर वाह कहानी राजाओं की नहीं है
वह केवल प्रजा और प्रजा की कहानी है
जानता हूँ दोस्त तुम बेचैन हो
तुम्हारी उदासी मेरी कविता की पराजय है