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तुम्हारी ग़लतफ़हमी / वीरा
Kavita Kosh से
तुम लेटे थे और नाराज़ थे
कि छत तुम्हारे
ऊपर है
तुम खड़े हो गए
और ख़ुश हो लिए
कि ज़मीन तुम्हारे
पाँवों तले है;
क्या तुम दरवाज़े से
बाहर नहीं आओगे
यह महसूस करने
कि तुम दीवारों
के बीच थे?
(रचनाकाल : 1978)