भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तुम्हारी चाँदनी / ओमप्रकाश सारस्वत
Kavita Kosh से
उनमें तुम्हारी चांदनी
और धूप बस गई,
हमको हमारे रात-दिन
शामो-सुब्ह कबूल
तुम आइनों की सीख से
उनके लिए सजो,
ज्यादती कबूल
तुम जिनके जीने की
वजह बनो, बने रहो,
हमको गिने-चुने से पल भी
बाअदब कबूल
यहां कौन किसकी सीपियों का,
मोती हो सका
यहां कौन किसको उम्र भर
क्यों हो सका कबूल ?