भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुम्हारी निगह दिल को बहला गई / मेला राम 'वफ़ा'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम्हारी निगह दिल को बहला गई
इशारों इशारों में समझा गई

गिरीं बिजलियों खिरमने-सब्र पर
अदाएं तबस्सुम ग़ज़ब ढा गई

जिगर का हुआ हाल दिल की तरह
इसे भी किसी की नज़र खा गई

भभूका थी आहे-सहर-गाह भी
जिधर से गई आग बरसा गई

गया मरने पर भी न दीवाना-पन
मिरी रूह भी सुए-सहरा गई

ग़ज़ब की है दाद-आफ़रीं तेरी याद
जब आई मिरे दिल को तड़पा गई

'वफ़ा' लग गया जी को आज़ारे-इश्क़
जवानी के बदले क़ज़ा आ गई।