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तुम्हारी प्रत्याकृति / असंगघोष

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तुम्हारी आँखों में
मुझे एक प्रतिकृति
दिखाई देती है वसुधा!
धुँधली-सी
खोई-खोई या
किसी विचार में डूबी
अपनी बड़ी हो चुकी
बेटी की चिन्ता में लीन
चेहरा-सा लगता है
थका-थका
पीला पड़ता चेहरा
नहीं-नहीं
रक्त की कमी नहीं है
शायद चिन्ता ने
तनाव पैदा कर
तुम्हारे चेहरे को
मलिन किया है,
उस पर आँखें डूबी-डूबी-सी
शून्य में निहारतीं
खोजती नजरें किसी
अनुत्तरित प्रश्न के उत्तर को
जा टिकती हैं क्षितिज पर
जहाँ जमीं-आसमाँ के मिलन का
भ्रम-सा होता है, परन्तु
प्रश्न फिर भी अनुत्तरित है।

स्याह पड़ती साँय
तुम्हारी आँखों में
उस आकृति को पहचानने की
असम्भव कोशिश की मैंने वसुधा!
और तुम्हारे प्रश्नों के ढेर में
एक प्रश्न और छोड़ दिया
कहीं वह आकृति जो
तुम्हारी आँखों में है
तुम्हारी ही
प्रत्याकृति तो नहीं है?
ठीक तुम्हारी ही तरह वसुधा!