तुम्हारी बदज़ात दुनिया से नही हूँ, दोस्त / गुँजन श्रीवास्तव
मैं एक दिन उन तमाम चीज़ों से
प्रेम करने लग जाऊँगा
जिन्हें प्रेम से रखा गया है
सदियों से वंचित !
मैं एक सुबह मैदान की जगह
कूड़ेदान की तरफ़ निकलूंगा
और लगा लूँगा कीचड़ से
सने एक सुअर को गले
मैं अनेक युक्तियों से करूँगा
किसी गधे और उल्लू से दोस्ती
और सीखूँगा उनमें निहित तमाम गुणों को
मैं बैठ जाऊँगा कभी किसी सुबह
अपनी छत पर
संगीत के उपकरणों के साथ
एक कौवे के सुर में सुर मिलाने को
कछुए से उसकी धीमी रफ़्तार की आलोचना
की जगह करूँगा
उसकी संगतता का बखान !
और एकदिन प्रेम की तलाश में निकलूँगा
बहुत दूर
उस स्त्री को प्रेम करने
जिसे उसकी वेशभूषा,
रंग - रूप और हालत देख
कभी किसी ने नही देखा
प्रेम भरी निगाह से
आख़िर में घर लौट मिटा दूँगा
अपना पता और
अपने घर के बाहर लगे नामपट्ट को
लिख दूँगा अपनी दीवारों पर —
तुम्हारी इस बदज़ात दुनिया से नही हूँ, दोस्त ।