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तुम्हारी बारिश / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
Kavita Kosh से
बारिश धीरे धीरे गुनगुनाती है
वो सारे गीत जो मैं तुम्हारे लिए गाया करता था
झिल्ली और मेढक पार्श्व संगीत देते हैं
भीगी हुई सड़क से लौटती रोशनी
तुम्हारी हँसी है
तुमसे प्यार करना
मूसलाधार बारिश में
अंधाधुंध गाड़ी चलाने जैसा क्यों था?
भीषण दुर्घटनाओं में मौत से बच जाना अभिशाप है
तुम्हारे बिना रहना हाथ पैरों के बगैर जीना है
भीगी हुई रातरानी
तुम्हारे भीगे हुए नाखून के बराबर भी नहीं है
भीगे हुए पहाड़ पर एक एक करके बुझती हुई बत्तियाँ
तुम्हारे गहने हैं जो मैंने उतारे थे एक एक कर
बारिश बंद हो गई है सड़कें सूख रही हैं
काश! एक बार फिर तुम बरसतीं
मेरी नमी सूख जाने के पहले