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तुम्हारी मुंडेर पर / सुधीर सक्सेना
Kavita Kosh से
आसमान में
उड़ूँगा एक दिन
पतंग बन
कटने के लिए ।
कटूँगा
और गिर पड़ूँगा
सारे ज़माने को धता बताता
तुम्हारी मुंडरे पर ।