तुम्हारी याद को दिल से जुदा होने नहीं देता / रविकांत अनमोल
तुम्हारी याद को दिल से जुदा होने नहीं देता
तुम्हारा दर्द रातों को मुझे सोने नहीं देता
ख़िरदमंदी<ref>समझदारी, अक़्लमन्दी</ref> मिरी मुझको वफ़ा करने नहीं देती
ये पागल दिल कि मुझको बेवफ़ा होने नहीं देता
मैं हर सूरत में दिलबर तेरी सूरत देख लेता हूँ
तिरे चेहरे को ओझल आँख से होने नहीं देता
किसी की याद होंटों पर हँसी आने नहीं देती
कोई वा'दा है मेरी आँख को रोने नहीं देता
वो मुझ पर मेह्रबाँ है ये तो है इस बात से ज़ाहिर
मैं जो कुछ चाहता हूँ वो उसे होने नहीं देता
बशर<ref>इंसान</ref> कब से किये बैठा है अपनी मौत का सामां
ख़ुदा अपनी ख़ुदाई को फ़ना होने नहीं देता
न जाने किस तरह का दे दिया है दिल मुझे तूने
कि मुझको भीड़ में दुनिया की जो खोने नहीं देता