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तुम्हारी याद छाँव है / अंकित काव्यांश

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छोड़कर चले गए कभी कभी सभी
रूठती हुईं लगीं दिशाएं जब कभी
यूं लगा कि मन दुःखों का धूप गाँव है
किन्तु गाँव में तुम्हारी याद छाँव है।

प्यार की मरुस्थलीय भूमि के लिए
त्याग आयीं तुम सुखों की लाडली नदी।
तुम मिली तो लग रहा हुआ कुछ इस तरह
रुक गयी हो एक पल के वास्ते सदी।

तुम कहो तो एक बात आज मैं कहूँ।
फ़र्क़ ही नही कि डूब जाऊं या रहूँ।
अब तुम्हारा साथ ही नदी है नाव है।

नीम से नियम समाज के न मानकर
हाथ थाम संग चल पड़ीं जहाँ कहा।
जो तुम्हारे भाग्य में लिखे नही गए
उन दुःखों को भी ख़ुशी ख़ुशी सदा सहा।

आस पास प्यास का नगर बसा लिया
फिर तुम्हे नगर का राजपाठ दे दिया
जिंदगी का आख़िरी यही तो दाँव है।