भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुम्हारी याद / गरिमा सक्सेना

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हाथों में फिर से कुल्हड़ है
और तुम्हारी याद

बारिश में रुककर टपरी पर
हम बैठे थे साथ
टकराये थे नैन, नैन से
और हाथ से हाथ

बिन बोले ही वहाँ हुए थे
मन के सब संवाद

साथ तुम्हारे पी थी जो वो
अदरक वाली चाय
चीनी नहीं, घुले थे उसमें
सब प्रेमिल पर्याय

नहीं दुबारा मिला चाय का
मुझको वैसा स्वाद

सबसे नजर बचा कर
कुल्हड़ की अदला-बदली
मगर होंठ की लाली ने भी
कर दी थी चुगली

और ताकना अगल-बगल
प्यारी चोरी के बाद