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तुम्हारी याद / गरिमा सक्सेना
Kavita Kosh से
हाथों में फिर से कुल्हड़ है
और तुम्हारी याद
बारिश में रुककर टपरी पर
हम बैठे थे साथ
टकराये थे नैन, नैन से
और हाथ से हाथ
बिन बोले ही वहाँ हुए थे
मन के सब संवाद
साथ तुम्हारे पी थी जो वो
अदरक वाली चाय
चीनी नहीं, घुले थे उसमें
सब प्रेमिल पर्याय
नहीं दुबारा मिला चाय का
मुझको वैसा स्वाद
सबसे नजर बचा कर
कुल्हड़ की अदला-बदली
मगर होंठ की लाली ने भी
कर दी थी चुगली
और ताकना अगल-बगल
प्यारी चोरी के बाद