भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुम्हारी याद / नंद भारद्वाज

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आज फिर आई तुम्हारी याद
तुम फिर याद में आई-
आकर कौंध गई चारों तरफ़
समूचे ताल में !

रात भर होती रही बारिश
रह-रह कर हुमकता रहा आसमान
तुम्हारे होने का अहसास -
कहीं आस-पास
भीगती रही देहरी आंगन-द्वार
मन तिरता-डूबता रहा
तुम्हारी याद में !