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तुम्हारी याद / हरजेन्द्र चौधरी

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कभी फुहार
कभी बूँदाबाँदी
कभी मूसलाधार
आती ही रहती है
बिना रुके लगातार...

अथाह घाटियों से उठती घटाएँ
भिगोती रहती हैं मन की पगडंडियाँ
निकलती रहती हैं मेरे बीचोबीच

गड़गड़ाती है कौंधती है
बिजली-सी
शिरा-शिरा चौंधती है
तैरता रहता है आत्मा में अनहद नाद

हरी कोंपल की तरह
कोमल रखती है मुझे
पहाड़ी बारिश-सी तुम्हारी याद...


रचनाकाल : मार्च 1993, शिमला