भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तुम्हारी सुघड़ उँगलियों में / हालीना पोस्वियातोव्स्का
Kavita Kosh से
|
मैं एक सिहरन हूँ
फ़क़त एक लरज़
तुम्हारी सुघड़ उँगलियों में सँजोई हुई.
तुम्हारे तप्त होंठों के भार तले
दबी हुई पत्तियों का गीत हूँ मैं
तुम्हारी ग़मक परेशान करती है -- बताती है -- तुम्हारा होना
तुम्हारी ग़मक परेशान करती है -- अपने साथ लिए चली जाती है रात
तुम्हारी सुघड़ उँगलियों में
मैं एक रोशनी हूँ -- एक उजास
मृत अँधियारे दिन के ऊपर
मैं हरे चन्द्रमाओं के साथ चमकती हूँ
अचानक
तुम्हें पता चलता है कि मेरे होंठ हैं सुर्ख़
-और उनके भीतर बह रहा है
नमकीन स्वाद से लबरेज़ लहू.
अँग्रेज़ी से अनुवाद : सिद्धेश्वर सिंह