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तुम्हारी सौंपी यह दुनिया / मालचंद तिवाड़ी
Kavita Kosh से
मैं स्पर्श से बचता हूं
भुरने न लग जाए
दीमक चाटे काठ की मानिंद
यह दुनिया
मैं अँगुली नहीं उठाता
सुराख न हो जाए कहीं
जर्जर पवन की छाती में
मैं पुकारता नहीं तुम्हारा नाम
अनसुनी मेरी पुकार पर
ढेर ना हो जाए सारे शब्द
टूटे हुए खिलौनों की तरह
कैसे बयान करूं
किस एहतियात से संजोये बैठा हूं
तुम्हारे बगैर
तुम्हारी सौंपी यह दुनिया !
अनुवाद : स्वयं कवि द्वारा