भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तुम्हारी स्मृति ही है आधार / हनुमानप्रसाद पोद्दार
Kavita Kosh से
तुम्हारी स्मृति ही है आधार।
वही इस जीवन का सुख-सार॥
नहीं पलभर विस्मृति को स्थान।
नहीं है कभी अन्यका भान॥
देह, मन, मति, इन्द्रिय, सब अंग।
रँगे हैं सभी उसी के रंग॥
रहे यह देह कहीं पर कभी।
सने हैं मधुर स्मृति से सभी॥
तुम्हीं, बस, केवल प्राणाराम।
तुम्हीं मेरे जीवन-विश्राम॥
तुम्हीं से एकमात्र सबन्ध।
कट गये सभी दूसरे बन्ध॥
हुआ जीवन सुखमय, स्वच्छन्द।
प्राप्तकर तुम्हें, चिन्मयानन्द॥