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तुम्हारी स्मृति / केशव तिवारी
Kavita Kosh से
तुम्हारी स्मृति जैसे
तेज़ हवा में घबराई तितली
जब भी आती है
मन के किसी कोने में
चिपक के रह जाती है
मैं इन दिनों
आने वाले दिनों को ले कर
परेशान रहता हूँ
प्रेम जब वस्तु होकर रह जाएगा
लैला और मँजनू एक ब्राण्ड नेम
तब बाज़ार में इंच और मीटर के
नाप से बिकेगा प्रेम
जितनी गहरी जेब
उतना लम्बा प्रेम
एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी में
चाय बेचता मैं
हो सकता है मुझे भी
प्रेम बेचने का काम मिल जाय
तब मैं लिखूँगा इन्कारनामा
और
तुम्हारे ऊपर एक कविता
कोई कहे या न कहे पर
तुम तो यह कहोगी ही
एक कवि ने रोटी की शर्त पर
प्रेम बेचने से मना कर दिया ।