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तुम्हारी हँसी / आभा पूर्वे
Kavita Kosh से
तुम्हारी हँसी
चूड़ियों की खनक-सी
घाटियों में गूंजी थी
जैसे ओस की एक बूंद
फूलों की पंखुड़ी पर गिरी थी
मैंने चूड़ियों की खनक में
अपने कंगन की खनक
मिलाई थी
फिर मुझे हँसी की गूंज का पहाड़
दिखाई दिया था
लेकिन
मैंने आँखें खोलीं
तो वहाँ
न घाटी थी
न फूल थे और
न ही पहाड़ था
बस थी तो
सिर्फ
मेरी-तुम्हारी हँसी।