भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तुम्हारे आने की बात / मनीष मूंदड़ा
Kavita Kosh से
बात तुम्हारे आने की हैं
इसलिए सब ख़ुशनुमा-सा हैं
चाँद को अपने काँधे पर संभाले
शाम इंतजार कर रही है
तुम्हारे आने का
वहीं सूरज तुम्हें नजर करने
ठहरा हुआ है
ये पंछियों का कलरव भी
तुम्हारे स्वागत की
चहलपहल का हिस्सा हैं
बादल गहरे सुनहरे रंग लिए
तुम्हारी एक झलक को लालायित हैं
इन सब से घिरा मैं
और मेरा मन
मेरी आँखों का साथ दे रहें हैं
पलकें बिछाए
तुम्हारे इंतजार में...