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तुम्हारे और मेरे बीच फासले तो हैं / प्रेमचंद सहजवाला

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तुम्हारे और मेरे बीच फासले तो हैं
मगर खुशी है कि मिलने के सिलसिले तो हैं

चलोगे साथ तो हम भी कदम बढ़ाएंगे
ये बात और है उल्फत में मरहले तो हैं

अगरचे गाहे-ब-गाहे कहीं गिरेंगे ज़रूर
ज़हन में थोड़े से मज़बूत फैसले तो हैं

गुरूर कर न फलक-बोस आशियाने पर
ज़मीं की कोख में थोड़े से ज़लज़ले तो हैं

शजर हूँ तनहा मगर ये खुशी भी क्या कम है
मेरे वजूद पे थोड़े से घोंसले तो हैं