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तुम्हारे ख़त मुझे बहुत अच्छे लगते हैं / फ़िरदौस ख़ान
Kavita Kosh से
तुम्हारे ख़त मुझे बहुत अच्छे लगते हैं
क्यूंकि
तुम्हारी तहरीर का
हर इक लफ़्ज़
डूबा होता है
जज़्बात के समंदर में
और मैं
जज़्बात की इस ख़ुनक (ठंडक) को
उतार लेना चाहती हूँ
अपनी रूह की गहराई में
क्यूंकि
मेरी रूह भी प्यासी है
बिल्कुल मेरी तरह
और ये प्यास
दिनों या बरसों की नहीं
बल्कि सदियों की है
तुम्हारे ख़त मुझे बहुत अच्छे लगते हैं
क्यूंकि
तुम्हारी तहरीर का
हर इक लफ़्ज़
अया होता है
उम्मीद की सुनहरी किरनों से
और मैं
इन किरनों को अपने आंचल में समेटे
चलती रहती हूँ
उम्र की उस रहगुज़र पर
जो हालात की तारीकियों से दूर
बहुत दूर जाती है
सच!
तुम्हारे ख़त मुझे बहुत अच्छे लगते हैं।