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तुम्हारे गालों पे तिल पहले भी था / तारा सिंह

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तुम्हारे गालों पे तिल पहले भी था
मगर तब इतना कातिल न था

ये आज इसे क्या हो गया
जालिम तो था, जाहिल न था

पूछता था हाल-ए-दिल मेरा, जब मैं
किस्सा-ए-दिल बताने के काबिल न था

बहरे-जहां में, तबाह कश्ती-ए-उम्र के
भंवर बहुत थे, कोई दामने-साहिल न था

बेताबी-ए-दिल ले गई मुझको तेरे कूचे में
मन मेरा इसमें शामिल न था