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तुम्हारे जिस्म की ख़ुशबू गुलों से आती है / मुनव्वर राना
Kavita Kosh से
तुम्हारे जिस्म की ख़ुश्बू <ref>सुगंध</ref>गुलों <ref>फूलों</ref>से आती है
ख़बर तुम्हारी भी अब दूसरों से आती है
हमीं अकेले नहीं जागते हैं रातों में
उसे भी नींद बड़ी मुश्किलों से आती है
हमारी आँखों को मैला तो कर दिया है मगर
मोहब्बतों में चमक आँसुओं से आती है
इसी लिए तो अँधेरे हसीन लगते हैं
कि रात मिल के तेरे गेसुओं से आती है
ये किस मक़ाम पे पहुँचा दिया महब्बत ने
कि तेरी याद भी अब कोशिशों से आती है
शब्दार्थ
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