जब जब सृष्टि के स्वप्न टूटे हैं
तब तब ये गूढ़ प्रश्न उठे हैं
स्त्री केवल एक इकाई भर नहीं है
वह कभी कही अकुलाई नहीं है
स्त्री ही इस सृष्टि का मूल तत्व है
स्त्रीत्व में ही सृजन का सत्व है
तम्हारे ज्ञान में
कही सृजन का भी अंश है?
या केवल
जागतिक दुखो का ही दंश है?
अहल्या
द्रौपदी
सीता
तारा
मन्दोदरी
पञ्चकन्याः
स्मरेन्नित्यं
महापातकनाशिन्याः
कभी तो पढ़ा होता
स्मृति वाक्य में भी कुछ गढ़ा होता
बहुत कुशाग्र थी अपाला
ऋषि अत्रि ने जिसे पाला
युवार्षि कृशाश्व ने किया था विवाह
रुग्ण त्वचा ने गृहस्थी में लगायी आग
पति ने दिया त्याग
किन्तु मंत्रजननि थी अपाला
वेदमंत्रों की रच डाली थी माला
इंद्र को धरती पर आना पड़ा
कन्या की त्वचा को सुंदर बनाना पड़ा
सृष्टि के दर्शन को जिसने रचा
उससे ज्ञान का कौन सा कोना बचा?
उसी ज्ञान की पोथी अब
मैं भी बांच रही हूँ
तुम्हारे ज्ञान को जाँच रही हूँ।